Sunday, August 21, 2011


ये मेरी यादों का है मेला,

बचपन में यारों का खेल था,

बड़ा हुआ तो लगा बड़ा झमेल सा..

सपना एक पाई का था कभी,

अब एक पाई भी सपना सा...

मेरी गाड़ी मेरा बंगला और कोई मेरा अपना सा ...

सपना सपना हरदम घूमें ,

मन क घोड़े रोज नया आसमान चूमे,

कभी कभी निराश सा होकर...

मन मेरा भटके मेरे घर पहुंचे..

पर मन मेरा मुझसे कभी न हारा,

अभी तो बस थोड़ी ज़मीन नापी हैं,

बुला रहे हैं वो सारे तारे..

भटके भटके ना मैं भट्कुंगा,

सोच सोच के जो जो सोचा,

एक दिन सब पूरा करूँगा...

हारे न हारूँगा मैं..

रोक रोक के  हार जायेगा समय,

पर मेरे समय को कोई ना रोकेगा :)

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