बनने तो मैं कुछ और चला था,
पर बन गए हैं लगता मुझ में कई,
चेहरे तो हैं सब अलग यहाँ,
पर सब में दिखता मुझसा कोई,
आँखों में जूनून होता तो हैं,
पर हाथों में जंजीरें कई,
बदलना तो यहाँ बहुत कुछ था,
बदल गए हैं हम अपने आप में कहीं,
पाँव तो खड़े हैं हजारों में,
पर पहला कदम क्यों उठता नहीं,
जो उठ भी गया हैं कदम कोई,
पत्थरों से छल दिया है हमने ही कहीं,
खून तो बहाया था कभी किसी ने,
पर न जाना वो बहता रहेगा आज भी यूँ ही,
जीना यहाँ सब चाहते हैं अपनी जिंदगी,
और झाँक कर हम दरवाजे देखते नहीं,
आंसू जो आते हैं अपनी आँख में,
तो शिकायतें हो जाती हैं हमें कई,
मुद्दों पर मुद्दे बनते रहते हैं यहाँ,
और रह जाती हैं बस चर्चा हर कहीं,
सियासते समझती हैं पागल हमें,
भूल जाती हैं वो हमसे ही हैं कहीं ,
चेहरे जो हँसते हैं ऊँचे मुकामों पर,
घिन्न तो हुई होगी उन्हें भी कभी,
बदलना तो यहाँ बहुत कुछ हैं,
पर बदल गए हैं हम अपने आप में कहीं....
wah wah!
ReplyDeleteA great composition!!!!!!!!
ReplyDeleteProbably feelings very close to youth who strive for a clean world and find the practical life at 180 degree to their expectations.
Kudos!!!!!!!!!
Keep it up!!!!