कुछ दिन की उबलती हवाओं सी ,
कुछ रात की ठंडी चांदनी सी,
कुछ बचपन की गलियों से गुजरती,
कुछ आज के बड़प्पन में फंसी हुई सी....
काफी सारी यादें हम सिरहाने लेकर सो लेते हैं...
हम खुली आँखों से सपने बुनते हैं,
आसमान के तारों को देखकर,
हम खुली आँखों से सपने बुनते हैं,
आसमान के तारों को देखकर,
ऊँचाइयों का अनुमान लगा लेते हैं,
नंगे पाँव मीलों चलकर भी हम ,
मंजिलो को खोजते रह जाते हैं....
कितने ही रंग भरे हैं इन हाथों में,
जो मेहनत की मैल से छुप जाते हैं....
हम रोज आशियाना बनाने चलते हैं,
पर एक पत्थर बन कर लौट आते हैं....
जिंदगी किनारों की रेत सी ही सही,
लहरों से टकराने का दम हैं हम में
हालात की चोटों से बिखरे तो क्या,
हम मुस्कुराहटों का मरहम लगा लेते हैं....
हम हौंसलों के पंख फिर भी फैलाएं जाते हैं...
हम हौंसलों के पंख फिर भी फैलाएं जाते हैं.......
Great poem Neetu. The meaning is very good. If only you could work a bit more on the rhyming.
ReplyDeleteManoj Jain
thank you sir for giving time....
ReplyDeleteI'll practise on rhyming.
thank you very much
hi ....
ReplyDeleteits really a very gud effort....
the thought process is pretty impressive...
esp these 4 lines...
कितने ही रंग भरे हैं इन हाथों में,
जो मेहनत की मैल से छुप जाते हैं....
हम रोज आशियाना बनाने चलते हैं,
पर एक पत्थर बन कर लौट आते हैं....
brilliant lines :)
keep it up!!!!
abhishek mishra
hey if interested visit ma blog and let me knw ur comments...
shayarsblog.blogspot.com
@ Abhishek: I had visited your blog , and had also given feedbacks..., I also liked your compositions, very well written...
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