ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं,
पर क्यों हम इन्ही राहों में रह जाते हैं,
अपने निशां बनाने की होड़ में,
कितने ही भीड़ में खो जाते हैं....
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
क्यों हम इन्हें मिटाते जाते हैं,
कभी मंदिर के नाम पर,
कभी मस्जिद के नाम पर,
हम ऊँची इमारतें बनाये जाते हैं......
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
अपनी चार दीवारों को सजाने में,
हम गलीचों को सुखा करें जाते हैं,
गली नुक्कडों पर बिखरे हैं कांच,
जो हम एक दुसरे पर फेकें जाते हैं....
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
नदियों का कलरव हैं इन में,
जिसे हम चीख में बदलते जाते हैं,
कितनी कोमल हैं प्रकृति की गोद,
जिसे हम खूंखार बनाये जाते हैं,
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
कि मानवता की जड़े हैं इनमे,
हम क्यों इन्हें उखाडे जाते हैं,
वर्ग वर्ण के अंधेपन में,
हम आत्मा को बाँटते रह जाते हैं........
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं,
पर क्यों हम इन्ही राहों में रह जाते हैं,
अपने निशां बनाने की होड़ में,
कितने ही भीड़ में खो जाते हैं....
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
क्यों हम इन्हें मिटाते जाते हैं,
कभी मंदिर के नाम पर,
कभी मस्जिद के नाम पर,
हम ऊँची इमारतें बनाये जाते हैं......
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
अपनी चार दीवारों को सजाने में,
हम गलीचों को सुखा करें जाते हैं,
गली नुक्कडों पर बिखरे हैं कांच,
जो हम एक दुसरे पर फेकें जाते हैं....
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
नदियों का कलरव हैं इन में,
जिसे हम चीख में बदलते जाते हैं,
कितनी कोमल हैं प्रकृति की गोद,
जिसे हम खूंखार बनाये जाते हैं,
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
ये राहें कितनी सुन्दर हैं,
कि मानवता की जड़े हैं इनमे,
हम क्यों इन्हें उखाडे जाते हैं,
वर्ग वर्ण के अंधेपन में,
हम आत्मा को बाँटते रह जाते हैं........
बनकर हम मुसाफिर से आते हैं......
good story . what do U think in thailand?
ReplyDeleteonce again like ur thought process...
ReplyDeleteabhishek mishra