कोशिश करता हु मैं,
छुने के लिए अपने आप को,
लेकिन हर एक मोड़ पर नजर आती हैं,
फिर एक लम्बी डगर....
क्यों हैं फांसले इतने लम्बे,
समझ नहीं पाता हूँ मैं,
क्यों भागता हूँ खुद से खुद,
बता मेरे मन क्या करूँ मैं ?
भीगी पलकों में याद आते हैं,
क्षण भरे झूठी ख़ुशी क पल,
जब याचना कर रहा था तू,
पर मैं हठी था अटल,
जाऊं किस किनारे,
एक भंवर सा लगता हैं सब,
बैठा हु सब खो कर पाने,
बता फिर आएगा तू कब...?
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