Friday, September 25, 2009

Dushhehra


फिर जला दिया आज,
एक पुतला रावण का,
फिर बढा दिया आज,
अभिमान रावण का,
क्यों? क्योंकि उसे पता है,
वह हम सब पर हँसता है,
बार बार जन्म लेता है,
और कहा यह बसता है?
पूछो  सवाल खुदसे,
आवाज  आ जायेगी दिल से,
रावण यहाँ बसता है,
राम कोने मैं बैठता है,
रोज हाहाकार मचता है,
रावण तो बस एक दिन मरता है,
पर राम रोज जलता है,
हर चिथडा रावण का,
मरते मरते कहता है,
और जलाओ मुझको, क्योकि,
पुनः जन्म फिर लेना है,
यह भी वह कहता है कि,
अभी तो बस एक ढेर हूँ,
पर रोज का तो शेर हूँ,
इंसानियत के चिथड़े उडाता हु,
हत्या लूट आदि से अपना आतंक फैलाता हूँ....
एक दिन ख़ुशी का मौका है,
जलाना  तू , कितना जलाना चाहता है,
पर क्यों यह भूल जाता है,
तीर मुझ पर नहीं,
अपने आप पर चलाना है....
जिस दिन याद रहेगी यह बात,
भूल जायेगा तू मुझे,
नहीं होगी किसी दशहरे कि जरुरत,
रोज दिवाली बनाएगा,
पर मत खो तू कोरी कल्पना में,
यह सब तुझ पर ही निर्भर हैं,
सोच ले के कलियुग में,
तू ही राम और तू ही रावण है,
सत्य अहिंसा का तू ही साधन है,
दशा हो गई क्या आज की,
रावण सुना रहा है प्रवचन,
क्योंकि लिखने वाले क मन में भी,
छुपा है एक रावण...!!!!!

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